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Sunday, 17 May 2015

SHAIRY NO 2

हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।


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सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।

वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।

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